बुंदेलखंड में गिद्धों की वापसी | एक दशक में 103% वृद्धि | खतरे और समाधान ← Back to All Blogs

बुंदेलखंड में गिद्धों की संख्या में एक दशक में 103% की वृद्धि

Published on: 15 Jul 2025 | Author: SATYA PRAKASH
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बुंदेलखंड में गूंज रही गिद्धों की वापसी की पुकार झांसी/देवगढ़: गिद्धों की संख्या में गिरावट एक समय पूरे भारत में चिंता का विषय थी, लेकिन अब बुंदेलखंड इस संकटग्रस्त पक्षी की पुनःस्थापना का केंद्र बनता जा रहा है। इंडियन बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन सोसाइटी (IBCS) के अनुसार, 2009 में बुंदेलखंड में केवल 1,313 गिद्ध थे, जबकि 2019 तक यह संख्या 2,673 हो गई — यानी 103% की उल्लेखनीय वृद्धि। उत्तर प्रदेश के देवगढ़ स्थित महावीर स्वामी वन्यजीव अभयारण्य के शांत लाल बलुआ पत्थर की चट्टानों पर आज गिद्धों की विशाल पंख फैलाकर उड़ान भरते देखे जा सकते हैं, जो कभी दुर्लभ हो चुके थे। स्थानीय निवासी प्रह्लाद सिंह बताते हैं कि दो दशक पहले हजारों गिद्ध दिखते थे, लेकिन फिर अचानक गायब हो गए। अब एक बार फिर चट्टानों पर उनके जोड़े दिखने लगे हैं। प्रमुख गिद्ध प्रजातियाँ: बुंदेलखंड में पाए जाने वाले प्रमुख गिद्धों में शामिल हैं: लॉन्ग-बिल्ड वल्चर (Gyps indicus) स्लेंडर-बिल्ड वल्चर (Gyps tenuirostris) वाइट-रंपड वल्चर (Gyps bengalensis) हिमालयन ग्रिफॉन (Gyps himalayensis) मिस्र का गिद्ध (Neophron percnopterus) रेड-हेडेड या किंग वल्चर (Sarcogyps calvus) इस क्षेत्र में 30 से अधिक प्रजनन स्थल चिन्हित किए गए हैं, जिनमें ऐतिहासिक स्मारक, पीपल के पेड़, चट्टानें और नदियों के किनारे स्थित जगहें शामिल हैं। संवेदनशील सफलता की कहानी गिद्धों की यह बढ़ती संख्या एक संवेदनशील सफलता की कहानी है। डाइक्लोफेनाक, जो पशुओं में उपयोग होने वाली एक दर्दनिवारक दवा है, उसकी बिक्री पर प्रतिबंध इस वृद्धि का एक बड़ा कारण माना जाता है। इसके साथ ही स्थानीय जागरूकता, वन विभाग की सक्रियता, और गैर-सरकारी संगठनों की मेहनत भी इसमें सहायक रही है। लेकिन खतरे बरकरार हैं... इस आशा के बीच कई गंभीर खतरे भी मौजूद हैं: खनन और अतिक्रमण: कई चट्टानी प्रजनन स्थल खनन की भेंट चढ़ रहे हैं। उत्सव में घोंसले उजाड़े गए: "नमस्ते ओरछा" जैसे आयोजनों में ऐतिहासिक स्मारकों पर बसे घोंसले उजाड़े गए। आवारा पशु समस्या: सरकार द्वारा पशु वध पर प्रतिबंध और गोशालाओं की कमी के कारण बड़ी संख्या में आवारा गायें जंगलों में छोड़ दी गईं, जिससे चराई और जैव विविधता पर संकट आ गया। कुत्तों की संख्या में वृद्धि: छोड़े गए शवों को जंगली जानवर नहीं बल्कि आवारा कुत्ते खाते हैं, जिससे गिद्धों को भोजन नहीं मिल पाता। गिद्ध रेस्टोरेंट: उम्मीद की किरण 2013 में देओगढ़ में उत्तर प्रदेश का पहला गिद्ध रेस्टोरेंट शुरू किया गया, जहां डाइक्लोफेनाक-मुक्त शवों को सुरक्षित रूप से गिद्धों को खिलाया जाता था। इसका सकारात्मक प्रभाव भी देखा गया। लेकिन वित्तीय सहयोग और सरकारी लापरवाही के कारण यह योजना ठप हो गई। आगे का रास्ता क्या है? गौशालाओं की स्थापना: जिनमें बूढ़ी गायों को रखा जाए, उनके शवों से गिद्धों को सुरक्षित भोजन मिले। गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र: केवल डाइक्लोफेनाक-मुक्त नहीं, बल्कि मानवीय गतिविधियों से मुक्त क्षेत्र बनाए जाएं। स्थायी निगरानी एवं संरक्षण नीति बनाना समय की मांग है। निष्कर्ष: गिद्धों की यह वापसी निश्चित रूप से बुंदेलखंड और पूरे भारत के लिए संरक्षण की एक प्रेरणादायक कहानी है, लेकिन यह सफलता तभी स्थायी होगी जब हम इनके आवास, भोजन और प्रजनन स्थलों की रक्षा करेंगे। Cover Photo Credit: roundglasssustain.com
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